ओम् से नून तक OM se NOON Tak Part 1
संभव है कि आप मेरा लेख पढ़कर कहें कि आपने ग़लत लिखा है। मैं मानता हूँ कि मैं ग़लत लिख सकता हूँ लेकिन यह भी हो सकता है कि लेख पढ़ने के बाद आप कहें कि आपको कुछ बातें नई पता चली हैं। ऐसे में अगर मैं ग़लती के डर से अपने विचार न लिखता तो शायद ज़्यादा बड़ी ग़लती करता। मेरे विचार मेरे अनुसंधान का निष्कर्ष हैं और कोई भी अनुसंधान ग़लती से पाक नहीं होता। ग़लती के डर से अनुसंधान न करना सबसे बड़ी ग़लती है। जब लोग नई खोज बंद कर देते हैं तो वे पुरानी जानकारी के दायरे में सीमित हो जाते हैं। इससे उनका विकास रुक जाता है। जब विकास रुक जाता है तो लोग नये लगने वाले विचारों का स्वागत नहीं करते। वे नया विचार सामने रखने वालों को मार डालते हैं। चाहे वे विचार नए न हों बल्कि शाश्वत सत्य हों। इसकी मिसाल नबी मूसा और नबी यूनुस (अ०) हैं। Egyptians और Assyrians ने इन्हें मारने की कोशिश की। जबकि उन्होंने उन्हें कल्याणकारी सत्य बातों का ज्ञान दिया था। मेरे लेख 'ओम् से नून तक' पर आपकी जो भी प्रतिक्रिया होगी, उससे आपको स्वयं का बोध होगा कि क्या आपका मानसिक विकास हो रहा है या रुक चुका है। मैंने टीन एज में ...