ओम् से नून तक OM se NOON Tak Part 1
संभव है कि आप मेरा लेख पढ़कर कहें कि आपने ग़लत लिखा है।
मैं मानता हूँ कि मैं ग़लत लिख सकता हूँ लेकिन यह भी हो सकता है कि लेख पढ़ने के बाद आप कहें कि आपको कुछ बातें नई पता चली हैं।
ऐसे में अगर मैं ग़लती के डर से अपने विचार न लिखता तो शायद ज़्यादा बड़ी ग़लती करता।
मेरे विचार मेरे अनुसंधान का निष्कर्ष हैं और कोई भी अनुसंधान ग़लती से पाक नहीं होता।
ग़लती के डर से अनुसंधान न करना सबसे बड़ी ग़लती है। जब लोग नई खोज बंद कर देते हैं तो वे पुरानी जानकारी के दायरे में सीमित हो जाते हैं। इससे उनका विकास रुक जाता है। जब विकास रुक जाता है तो लोग नये लगने वाले विचारों का स्वागत नहीं करते। वे नया विचार सामने रखने वालों को मार डालते हैं। चाहे वे विचार नए न हों बल्कि शाश्वत सत्य हों।
इसकी मिसाल नबी मूसा और नबी यूनुस (अ०) हैं। Egyptians और Assyrians ने इन्हें मारने की कोशिश की। जबकि उन्होंने उन्हें कल्याणकारी सत्य बातों का ज्ञान दिया था।
मेरे लेख 'ओम् से नून तक' पर आपकी जो भी प्रतिक्रिया होगी, उससे आपको स्वयं का बोध होगा कि क्या आपका मानसिक विकास हो रहा है या रुक चुका है।
मैंने टीन एज में एक सनातनी विद्वान के लेख में पढ़ा था कि क़ुरआन के abbreviated letters 'अलिफ़-लाम-मीम' शब्द और वेदों का 'ओम्' शब्द एक है।
दोनों शब्दों का अर्थ एक नहीं है।
मैंने 'अलिफ़-लाम-मीम' और 'ओम्' दोनों को बोलकर देखा तो दोनों की ध्वनि भी अलग निकली।
मैंने इस बात को वहीं छोड़ दिया।
एक दिन आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझसे कहा कि 'वैदिक विद्वान 'ओम्' कहना अशुद्ध उच्चारण बताते हैं। इसका सही उच्चारण कुछ और है।'
यह सुनकर 'ओम्' के विषय में जानने की इच्छा और ज़्यादा बढ़ गई कि 'ओम्' का सही उच्चारण कुछ और है तो वह सही उच्चारण क्या है?
मैं अपने अनुभव से यह बात जानता हूँ कि अगर आपके माइंड में कोई प्रश्न है तो एक दिन किसी न किसी तरह आपके माइंड पर उसका उत्तर भी स्पष्ट हो जाएगा। यह क़ुदरत का एक क़ानून है।
आप इस क़ानून से बहुत फ़ायदा उठा सकते हैं। आप अपने माइंड में अच्छे प्रश्न कर सकते हैं। यदि आप किसी समस्या से घिरे हैं तो आप उसके समाधान के विषय में प्रश्न कर सकते हैं।
यदि आपके पास धन कम है तो आप धनपतियों से ईर्ष्या करने के बजाय अपने माइंड में यह प्रश्न कर सकते कि धन की अधिकता होने के बाद धनपति कैसा फ़ील करते हैं?
आप अच्छे और सफल लोगों को देखकर अपने मन में सवाल कर सकते हैं कि ये लोग क्या करके सफल हुए?
यदि आपके सवाल अच्छे हैं तो जब आपको उनके जवाब मिलेंगे तो आपके जीवन की क्वालिटी बेहतर हो जाएगी क्योंकि आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा।
इस यूनिवर्स में हर सवाल सुना जा रहा है, चाहे आप वह सवाल चुपके से अपने मन में ही क्यों न करें।
हरगिज़ दूसरों का बुरा आचरण देखकर अपने मन में कोई बुरा सवाल मत करना।
बुरे सवाल की मिसाल यह है कि किसी के घर रात में चोरी हो जाए और आप अपने मन में सवाल कर बैठें कि 'लोग इतनी गहरी नींद कैसे सो जाते हैं कि कुछ भी हो जाए, उन्हें पता नहीं चलता?'
आप अच्छा सवाल करें क्योंकि उसके बाद जवाब आना ही है।
गहरी नज़र वाले कहते हैं कि अच्छा सवाल आधा ज्ञान है
...और ज्ञानी कहते हैं कि सवाल में ही जवाब छिपा है।
'ओम्' का सही उच्चारण स्वयं 'ओं' में ही छिपा है। मुझे इसका संकेत ऋग्वेद से मिला।
आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह से बातचीत की इस घटना के 20 वर्ष बाद एक दिन मैं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का वेदानुवाद पढ़ रहा था। मैंने उसमें पढ़ा कि "बादल बैल की भाँति 'ओं' शब्द करते हैं।"
तिस्रो वाच: प्र वद ज्योतिर्ग्रा या एतद दुह्रे मधु दोघ मूधा।
स व॒त्सं कृ॒ण्वन्गर्भ॒मोष॑धीनां स॒द्यो जा॒तो वृ॑ष॒भो रो॑रवीति ॥
-ऋग्वेद मंडल 7: अ० 6: सूक्त 101 मंत्र:1
अर्थात 'अग्र भाग में ओंकारयुक्त जो ऋक्, यजु और साम नामक तीन वाक्य जल का दोहन करते हैं, इनको कहो। सहवासी विद्युत रूप अग्नि को उत्पन्न करते हुए पर्जन्य वृषभ के समान शब्द करते हैं।'
मैंने वृषभ (बैल) और पर्जन्य (बादल) की ध्वनि में विचार किया और फिर मैंने बैल के समान ध्वनि करने का अभ्यास किया। जब मैंने इसका अभ्यास किया तो मेरी नाक में एक गूंज पैदा हुई। जिससे मेरा शरीर वाइब्रेट हुआ और मुझे अच्छा फ़ील हुआ।
'ओं' को 'ऊँ' भी लिखा जाता है और इसे एकाक्षरी भी कहा जाता है।
जब मैंने 'ऊँ' लिखा देखा तब मुझे उसके ऊपर चंद्रबिंदु के रूप में अरबी अक्षर 'नून' लिखा हुआ दिखा। इस प्रकार मेरा मैं ऊँ पर चंद्रबिंदु देखकर अपने मन में 'ओम्' पर विचार करते हुए 'नून' पहुंच गया।
पवित्र क़ुरआन में 68 वीं सूरह 'नून' अक्षर से शुरू होती है। नून एक अक्षर है। जब मैंने नून का सही उच्चारण किया तो मेरी नाक में ठीक वैसी ही गूंज उत्पन्न हुई जैसी कि बैल के समान 'ओं' का सही उच्चारण करते हुई थी।
मुझे याद है कि मैंने रात में 100 बार नून का सही उच्चारण किया और उसके बाद सो गया। उस रात मुझे गहरी नींद आई थी। आप इस बात से अवश्य ही सहमत होंगे कि गहरी नींद मन-मस्तिष्क और शरीर के आरोग्य के लिए और रोग दूर होने के लिए अति आवश्यक है।
आप इस बात से भी अवश्य ही सहमत होंगे कि उसके रोगी और निरोग होने में वाइब्रेशन अहम भूमिका रखते हैं। हक़ीक़त यह है कि आदमी का अस्तित्व ही वाइब्रेशन के कारण है।
यदि हम ऐसा वाइब्रेशन डिस्कवर कर लेते हैं, जिससे नींद अच्छी आती है तो हम उस वाइब्रेशन से कुछ रोगों की हीलिंग में काम ले सकते हैं।
मैं अपनी खोज से इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 'ओं' और नून का सही उच्चारण किया जाए तो मनुष्य के शरीर में लगभग एक जैसी वाइब्रेशन पैदा होती है।
जो योगाचार्य मुस्लिमों को योग का प्रशिक्षण देते हैं वे उन्हें आमीन या अलिफ़-लाम-मीम के बजाय 'नून' जपने के लिए कह सकते हैं। जो मुस्लिम योग सीखते हैं, वे 'नून' कहें तो इसका वाइब्रेशन 'ओं' के वाइब्रेशन जैसा होगा।
कृपया ध्यान दें कि मेरा उद्देश्य 'ओम्' और 'नून', दोनों में तुलना करके एक को सही और दूसरे को ग़लत बताना नहीं है।
मैंने यह नहीं बताया है कि 'ओं' और 'नून' का अर्थ एक है।
मैंने यह बताया है कि 'ओं' और 'नून' दोनों शब्दों का अर्थ अलग है।
बल्कि 'ओं' के विषय में भी जैन-बौद्ध विद्वानों और आर्य समाजी विद्वानों में मतभेद है। जैनी और आर्य समाजी दोनों ही 'ओम्' बोलते हैं। आर्य समाजी 'ओं' को सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम मानते हैं जबकि जैनी सृष्टिकर्ता परमेश्वर को ही नहीं मानते। सो जैनी 'ओं' शब्द को भी सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम नहीं मानते।
बौद्ध भी सृष्टिकर्ता परमेश्वर को नहीं मानते परंतु तिब्बती बौद्ध यह मंत्र पढ़ते हैं: 'ओम मणि पद्मे हूँ'
इसमें भी 'ओम' शब्द मौजूद है। इसे बौद्ध दर्शन का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना जाता है।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर को मानने वाले वैदिक आर्य और सृष्टिकर्ता परमेश्वर को न मानने वाले आर्य अर्थात जैन-बौद्ध आदि सभी आर्य 'ओम्' का जाप अवश्य करते हैं।
जब सैकड़ों वर्षों में वैदिक विद्वान और जैन-बौद्ध विद्वान 'ओं' के अर्थ पर एकमत न हो सके तो वास्तव में जब तक मैं उसमें पूरी रिसर्च न कर लूँ, तब तक मैं उनमें से किसी एक से सहमत होने के बजाय दोनों के प्रमाणों और विचार पढ़ना पसंद करूंगा। इसी रीति से मेरा बौद्धिक विकास हो सकता है।
मैं लोगों से धर्म पर बहस करने के बजाय सब धर्मों के विद्वानों के विचार पढ़ना पसंद करता हूँ। जो उन्होंने हमारे कल्याण के उद्देश्य से लिखे हैं। व्यर्थ बहस करने से व्यक्ति और समाज का कल्याण नहीं हो सकता।
मेरा उद्देश्य अपना और आपका कल्याण करना है और मैं हर अक्षर और हर शब्द को, हरेक मंत्र और हरेक आयत को इसी दृष्टिकोण से देखता हूँ कि क्या इससे मेरा और आपका कुछ कल्याण हो सकता है और यदि हो सकता है तो किस प्रकार?
मैंने 30 वर्षों से अधिक अवधि पर व्याप्त अपने लंबे अनुसंधान में यह पाया है कि चाहे 'ओं' और 'नून' का अर्थ अलग हो तो भी दोनों के उच्चारण से मेरा और आपका बहुत अधिक कल्याण हो सकता है।
मैंने नेचुरोपैथी और योग में डिप्लोमा तब लिया था, जब योग ट्रेंड में नहीं था।
अब मुस्लिम भी योग सीख रहे हैं। मैं यह लेख विशेषकर योग सीखने वाले मुस्लिमों की हेल्प के लिए लिख रहा हूँ और यदि किसी भी धर्म का कोई व्यक्ति 'ओम्' का सही उच्चारण जानना चाहता है और इसके सही उच्चारण की शक्ति से अपनी कोई मनोकामना पूर्ण करना चाहता है तो शायद यह लेख उसके लिए भी उपयोगी हो।'
मुस्लिमों को 'ऊँ' के बारे में सही जानकारी नहीं होती। इसलिए वे कई बार योगासन करते हुए ऊँ के उच्चारण से हिचकते हैं। जो मुस्लिम योग करना पसंद करते हैं लेकिन 'ऊँ' नहीं बोलते, उन्हें योगाचार्य 'आमीन' कहने की शिक्षा देते हैं जबकि आमीन दुआ के बाद बोला जाता है न कि बिना दुआ किए।
आमीन का अर्थ है 'तथास्तु' अर्थात ऐसा ही हो।
कुछ विद्वान मुस्लिमों को 'ऊँ' के बजाय 'अलिफ़ लाम मीम' बोलने के लिए कहते हैं। 'अलिफ़ लाम मीम' में भी वह गूंज और वाइब्रेशन नहीं है, जो 'ऊँ' में है।
'ऊँ' से जो बाइब्रेशन पैदा होता है, वह वाइब्रेशन अरबी अक्षर 'नून' से पैदा होता है। इससे ऊँ जैसा ही नाद पैदा होता है।
नून अक्षर अरबी शब्द 'कुन' का अंतिम अंश है। 'कुन' शब्द का अर्थ है 'हो जा।
मेरा विचार है कि परमेश्वर ने ब्रह्मांड उत्पन्न करने के लिए जो शब्द 'कुन' बोला तो उसी के शब्द के 'नून' की गूंज (वाइब्रेशन) आज तक यूनिवर्स में सुनी जा रही है। इसी वाइब्रेशन से सृष्टि चल रही है और इसमें नई परिस्थितियां बन रही हैं।
मेरे विचार को वैदिक विद्वानों की बात से भी बल मिलता है। वे लिखते हैं कि 'ओम का यह चिह्न ‘ॐ’ अद्भुत है। यह पुरे ब्रह्मांड को प्रदर्शित करता है। ध्वनि 'ओम' को समस्त सृष्टि की मौलिक ध्वनि माना जाता है। इससे ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ और इसी ध्वनि से यह क़ायम है।'
ओंकार का सही प्राकृतिक उच्चारण क्या है?
वैदिक धर्म में ऊँ का इतना अधिक महत्व है कि हरेक शुभ कार्य में सबसे पहले इसका उच्चारण करते हैं। इसकी महिमा और इसकी शक्ति बताते हुए कहा गया है कि
हां, यह शब्दांश ब्रह्म है,
यह सबसे ऊंचा शब्द है
वह जो इस उच्चारण को जानता है,
वह चाहे जो चाहे, उसका है।
– कठो उपनिषद, 1.2.15-1.2.16
एक आदमी, जो ऊँ का सही उच्चारण जानता है। वह जो चीज़ चाहे, वह चीज़ उसकी है। अब एक आदमी स्वयं चेक करके देख सकता है। वह अपनी ज़रूरत की किसी चीज़ को चाहे और ऊँ का उच्चारण करे। यदि वह चीज़ उसे मिल जाए तो उसका उच्चारण सही है।
मेरी नज़र में ओंकार का सही उच्चारण वही है, जो प्राकृतिक है। ऋग्वेद के उपरोक्त मंत्र (ऋ० 7: 6: 101:1) में बताया गया है कि पर्जन्य (बादल) वृषभ (बैल) की भांति शब्द करते हैं।
ओंकार का सही उच्चारण वही है, जिसमें चंद्रबिंदु की गूंज हो।
लेख अभी जारी है...
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